बद्रीनाथ किस हिमालय में स्थित है : जानें बद्रीनाथ के कपाट कब बंद होंगे 2023 में

इस लेख में


आजके इस लेख में हम बद्रीनाथ किस हिमालय में स्थित है और क्या है इसके महत्व ये जानने की कोशिश करेंगे साथ ही बद्रीनाथ धाम से जुड़ी मान्यताएं और इतिहास के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।

बद्रीनाथ किस हिमालय में स्थित है

बद्रीनाथ धाम भारत के उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में स्थित है। सम्पूर्ण बद्रीनाथ क्षेत्र गढ़वाल हिमालय में पड़ता है। यह मंदिर नर और नारायण नाम के दो पर्वत के बीच अलकनंदा नदी के तट पर बसा हुआ है। अत्यन्त प्रसिद्ध यह तीर्थस्थल हिमालय की गोद में समुद्री सतह से लगभग 3,100 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। ऋषिकेश से ये मंदिर उत्तर दिशा में 290 किलोमीटर दूर है।

बद्रीनाथ धाम का महत्व

यह भगवान विष्णु को समर्पित एक प्राचीन तथा महत्वपूर्ण मंदिर है। यह मंदिर उत्तराखंड के पंच बदरी में से एक है जिसे विशाल बदरी अथवा बदरी विशाल भी कहा जाता है। यहां विष्णु भगवान के रूप बद्रीनारायण अर्थात बद्रीनाथ की पूजा की जाती है। बद्रीनाथ धाम को धार्मिक ग्रन्थों में धरती के आठवां वैकुंठ कहा गया है। कहते हैं कि यहां विष्णु भगवान 6 महिना निद्रा में और 6 महिना जागृत अवस्था में रहते हैं। भारत के चार धामों में से एक तथा हिन्दुओं के प्रमुख तीर्थ स्थल बद्रीनाथ धाम को भगवान विष्णु के निवास स्थल के रूप में जाना जाता है।

नोटः 
हिन्दुओं के चार धाम - बद्रीनाथ, द्वारका, जगन्नाथ और रामेश्‍वरम हैं। लेकिन बद्रीनाथ जाने वाले कोई भी तीर्थयात्री गंगोत्री, यमुनोत्री और केदारनाथ के दर्शन भी करते हैं। बद्रीनाथ समेत उत्तराखंड के इन चारों तीर्थ को मिलाकर छोटा चार धाम या उत्तराखंड के चार धाम कहा जाता है।

बद्रीनाथ मंदिर के मान्यताएं

इस जगह के बारे में ऐसा मान्यता है कि विष्णु भगवान के अवतारों में से एक अवतार नर और नारायण ऋषि ने यहां पर तपस्या की थी। उनके कठोर तपस्या से खुश होकर इस जगह पर शिवजी प्रकट हुए थे।

यह भी मान्यता है की इसी जगह पर महर्षी व्यास ने महाभारत लिखी थी और पांडवो ने भी स्वर्ग जाने से पहले इस स्थान को अपना आखिरी पड़ाव बनाया था।

कहते हैं कि जो लोग बदरी विशाल के दर्शन कर लेते हैं उन्हें फिर जनम नहीं लेना पड़ता है अर्थात उन्हें मोक्ष प्राप्त हो जाती है। शास्त्रों मे बताया है कि मनुष्‍य को अपने सम्पूर्ण जीवन में कम से कम दो बार बद्रीनाथ की यात्रा करना चाहिए।

इस स्थान पर एक ऊँची शिला है जिसका नाम ब्रह्मकपाल है। यहीं पर पितरों का श्राद्ध आदि किया जाता है। कहा जाता है कि ब्रह्मकपाल में श्राद्ध करने से पितरों को मुक्ति मिलती है।

इस धाम का नाम बद्रीनाथ कैसे हुआ इसके पीछे यह मान्यता है कि यहां पाई जाने वाली जंगली बेरी को बद्री कहते हैं जिसके आधार पर इस क्षेत्र को बद्री वन कहा जाने लगा और इसी कारण धाम का नाम भी बद्री या बद्रीनाथ पड़ा।

बद्रीनाथ धाम की वास्तुकला

अलकनंदा नदी के तट पर भगवान विष्णु का यह विशाल मंदिर प्राचीन शैली में निर्मित है। मंदिर के मुख्य द्वार तक चौड़ी सीढ़िया फैली हुई है। रंग-बिरंगे मुख्य द्वार बाहर से आकर्षक लगता है। मंदिर की ऊँचाई लगभग 15 मीटर है। यह मंदिर तीन भागों में बंटा हुआ है, जिसमें पहला भाग है मंदिर के गर्भगृह, दूसरा भाग है दर्शन मंडप जहां अनुष्ठान आदि की जाती है और तीसरा भाग है भक्तों के लिए सभा मंडप। गर्भगृह की छत को शंकु के आकार में बनाया गया है।  

मंदिर के अंदर बद्रीनारायण अर्थात भगवान विष्णु की एक मीटर ऊँची शालिग्राम पत्थर से बनी हुई प्रतिमा है। यह प्रतिमा चतुर्भुज योगमुद्रा में है। बदरी विशाल की दायां तरफ कुबेर की मूर्ति है। सामने पर उद्धवजी तथा उत्सवमूर्ति भी है। शीतकालीन मौसम में बरफ जमने के कारण उत्सवमूर्ति को जोशीमठ ले जाया जाता है। यहां पर करीब 15 मुर्तियां स्थापित है जिसमें नर और नारायण तथा मां लक्ष्मी के साथ अन्य देवताओं आदि की मुर्तियां भी सामील हैं।

बद्रीनाथ मंदिर के इतिहास

भारत के चार धाम में एक बद्रीनाथ धाम का इतिहास काफी पुराना तथा रोचक है। 8 वीं से 16 वीं शताब्‍दी तक मंदिर में कई प्रकार के परिवर्तन हुए हैं। विभिन्न कारण से कई बार मंदिर का पुन: निर्माण कराया गया। बताया जाता है कि किसी समय में यह बौद्ध मंदिर के रूप में भी रहा था। वर्तमान में सनातन धर्म का मुख्य तीर्थ के रूप में है यह मंदिर।

पुराण के अनुसार, आदि शंकराचार्य को अलकनंदा नदी से बद्रीनाथ की मूर्ति मिली थी जिसे बौद्ध धर्मावलम्बी से सुरक्षित रखने के लिए सन्तों ने नारदकुंड में डाल दिया था।  8 वीं शताब्दी में शंकराचार्य ने नारद कुंड से भगवान की मूर्ति निकालकर तप्‍त कुंड नामक गर्म चश्‍मे के नीकट एक गुफा में स्‍थापित किया।

इसके बाद शंकराचार्य ने परमार शासक कनक पाल की मद्दत लेकर बौद्धों को इस जगह से हटाया। फिर राजा कनकपाल ने मंदिर की व्यवस्थापन किया। कथा अनुसार, इसके बाद, गढ़वाल के राजा ने 16 वीं शताब्‍दी में बद्रीनाथ की मूर्ति को गुफा से ले जाकर ‍मंदिर में प्रतिष्ठापन कर दिया।

बदरी विशाल के मंदिर को हिमस्‍खलन के कारण कई बार क्षति पहुंचा पर गढ़वाल के राजाओं ने मंदिर का पुनः निर्माण तथा विस्‍तार किया। सन् 1803 के भूकंप से भी मंदिर को भारी नुकसान हुआ तब जयपुर के राजा ने मंदिर का पुन: निर्माण किया। कई साल तक ऐसे ही क्रम चलने पर आज का बद्रीनाथ धाम लाखों भक्तों के लिए खुला है।

बद्रीनाथ से जुड़ी पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, यह स्थान पहले केदार भूमि अर्थात शिव की भूमि के रूप में व्यवस्थित था। यह भगवान शिव और मां पार्वती का निवास स्थान था।  

कहते हैं कि जब भगवान विष्णु ध्यान और विश्राम के लिए कोई उपयुक्त स्थान खोज रहे थें तो उन्हें यह स्थान अच्छा लगा। फिर भगवान विष्णु ने इस जगह को पाने के लिए एक युक्ति किया जिसके बारे में कथा में आगे बताया जा रहा है। 

शिव और पार्वती दोनों एक दिन भ्रमण करने गए थे और वापस लौटने पर उन्होंने अपने द्वार पर एक नन्हा शिशु को रोते हुए पाया।   

शिव के मना करने पर भी मां पार्वती ने शिशु को उठाकर अंदर ले गई। पार्वती माता ने बच्चे को शान्त करवाया और उसे वहीं सुलाकर शिव के साथ पास के एक झरने में नहाने चली गई। पर आश्चर्य तो ये हुआ कि वापस लौटने पर उन्होंने अपना घर का दरवाजा अंदर से बंद पाया। 

अब क्या करना है पार्वती द्वारा यह पूछे जाने पर शिव ने कहा कि शिवजी इसमें कुछ नहीं कर सकते। दरवाजा अब नहीं खुलेगा जिसके कारण उन्हें ही नयां ठिकाना ढूंढना होगा। फिर भगवान शिव और मां पार्वती इस जगह को त्यागकर केदारनाथ गए।

तो वह बालक ही विष्णु भगवान थे जिन्होंने बद्रीनाथ को इस युक्ति से अपना विश्राम स्थल बनाया।

कैसे हुआ मंदिर का नाम बद्रीनाथ

यह मंदिर का नाम बद्रीनाथ कैसे हुआ इससे संबंधित एक प्रसंग अनुसार एक बार भगवान विष्णु पूर्णतया ध्यान में बैठे थे तभी भारी मात्रा में हिमपात शुरू हुआ। ‍मां लक्ष्मी यह देखकर स्वयं विष्णु भगवान के पास जाकर एक बेर अर्थात बदरी के वृक्ष का रूप में खड़े होकर सारे हिम को अपने ऊपर लेने लगीं। उन्होनें भगवान विष्णु को धूप, बारिश और हिमपात से बचाने का कठोर तप किया।

कई साल बाद तपस्या पूरा होने पर विष्णु भगवान ने लक्ष्मी जी को हिम से ढकी हुई पाया। उन्होंने माता लक्ष्मी के ऐसी कठोर तप को देख कर कहा ‘आज के बाद इस मंदिर पर हम दोनों को साथ ही पूजा जाएगा और बदरी वृक्ष के रूप में तुमने मेरी सुरक्षा करने का कारण आज के बाद लोग मुझे बदरी के नाथ अर्थात बद्रीनाथ के नाम से भी जानेंगे।‘

तो कुछ इस तरह से विष्णु भगवान का नाम बद्रीनाथ हुआ और फलस्वरूप इस पवीत्र स्थानका नाम भी बद्रीनाथ धाम हुआ।

भविष्य में नहीं होंगे बद्रीनाथ?

ऐसा बताया जाता है कि भविष्य में कभी नर और नारायण पर्वत आपस में जुड़ जाएंगे, और जिस दिन ऐसा होगा बद्रीनाथ धाम का मार्ग पूर्ण रूप से बंद हो जाएगा तथा बद्रीनाथ के दर्शन नहीं हो पाएगा। पुराणों में बताया है कि भविष्य में आजका बद्रीनाथ और केदारेश्वर धाम गायब हो जाएंगे और उससे कई वर्षों बाद एक नए तीर्थ का उत्पत्ति होगा जिसका नाम होगा भविष्यबद्री

दूसरा मान्यता ये भी है कि जोशीमठ में स्थापित नरसिंह की मूर्ति का एक हाथ हरेक साल कुछ पतला होता जा रहा है। और जिस दिन ये हाथ समाप्त हो जाएगा उसी दिन से ब्रद्रीनाथ और केदारनाथ क्षेत्र का लुप्त होना भी शुरू हो जाएगा। 

बद्रीनाथ में देखने के लिए और क्या क्या है

बद्रीनाथ में देखने के लिए कुछ और जगहें
तप्त कुंड— ये नदि तट पर स्थित एक गर्म पानी का झरना है
ब्रह्मकपाल— ये एक समतल चबूतरा है जहाँ श्राद्ध आदि किया जाता है
शेषनेत्र शिला— ये एक गोल शिलाखंड है जिसपर शेषनाग की छाप है
शेषनेत्र झील— कहा जाता है कि झील के पानी से आंखो के रोग ठीक हो जाते हैं
चरणपादुका— यहां विष्णु भगवान के पैरों के निशान मौजूद हैं
नीलकंठ— ये बद्रीनाथ से दिखने वाला एक शिखर है जिसे ‘गढ़वाल क्वीन’ भी कहा जाता है

इनके अलावा यहां आसपास में देख्ने के लिए सतोपंथ ताल, गणेश गुफा, व्यास गुफा, भीम पुल, जोशीमठ, माता मूर्ति मंदिर, घंटाकर्ण मंदिर, वासुकी ताल, उर्वशी मंदिर, पंच शिला जैसी कुछ खास जगह भी हैं।

बद्रीनाथ मंदिर का कपाट कब खुलता है और कब बंद रहता है?

बद्रीनाथ धाम हरेक साल 6 महीने के लिए खुल्ला और 6 महीने के लिए बंद रहता है। वैसे तो मंदिर के कपाट बंद करने के लिए विजया दशमी के अवसर पर तिथि देखी जाती है और खोलने के लिए बसंत पंचमी के अवसर पर तिथि देखी जाती है।

बद्रीनाथ जी की आरती के समय
बद्रीनाथ भगवान की फोटो

सामान्य तौर पर, बद्रीनाथ मंदिर हर साल अक्टूबर-नवंबर में बंद किया जाता है और अप्रैल-मई में खोला जाता है।

नोट: 
बद्रीनाथ के कपाट कब बंद होंगे 2023 में?
इस साल बद्रीनाथ धाम के कपाट 27 अप्रैल 2023 को खोले जाएंगे और 19 नवंबर 2023 को कपाट बंद कर दिए जाएंगे।

बद्रीनाथ के दर्शन (बद्रीनाथ जी की आरती) के समय –

सुबह मंदिर खुलने का समय4:30 AMमहा अभिशेक तथा अभिशेक पूजा किया जाता है  
दर्शन के लिए खुलने का समय7 AM 
दोपहर विश्राम के लिए बंद होने का समय1:00 PM – 4:00 PM
साम को मंदिर बंद होने का समय9:00 PMशयन आरति के बाद मंदिर बंद किया जाता है

बद्रीनाथ का मौसम :

मई महिना से जून महिना तक बद्रीनाथ जाने के लिए सबसे अच्छा समय होता है। इस समय तापमान औसत में 18 डिग्री सेंटिग्रेड के आसपास रहता है जो आरामदायक होता है। इसके अलावा बद्रीनाथ जाने के लिए दूसरा अच्छा समय सितंबर से अक्टूबर तक है।

सर्दियों में मौसम खराब रहने के कारण बद्रीनाथ के मार्ग बंद रहते हैं और मंदिर भी बंद रहता है। इसलिए सर्दियों में बद्रीनाथ यात्रा नहीं किया जा सकता है।

बद्रीनाथ कैसे पहुंचे

बद्रीनाथ धाम जाने के लिए आप यातायात के तीनों माध्यम अर्थात हवाई यात्रा, रेल यात्रा तथा सड़क मार्ग में से कोई भी माध्यम अपना सकते हैं।

फ्लाइट से बद्रीनाथ धाम कैसे पहुंचे

बद्रीनाथ के निकटतम एयरपोर्ट है देहरादून स्थित जॉली ग्रांट अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट। एयरपोर्ट से बद्रीनाथ करीब 312 किमी दूर है। एयरपोर्ट से बद्रीनाथ मंदिर तक यात्रियों टैक्सी से पहुँच सकते हैं।

ट्रेन से बद्रीनाथ मंदिर कैसे पहुंचे

बद्रीनाथ के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन है ऋषिकेश रेलवे स्टेशन। ऋषिकेश स्टेशन बद्रीनाथ से करीब 292 किमी दूर है। यात्रीयों बस या टैक्सी से ऋषिकेश से बद्रीनाथ तक जा सकते हैं।

सड़क मार्ग से बद्रीनाथ मंदिर कैसे पहुंचे

बद्रीनाथ धाम सड़क माध्यम से उत्तराखंड के कई शहरों से जुड़ा हुआ है। दिल्ली से ऋषिकेश, हरिद्वार, देहरादून आदि शहरों के लिए बस मिल जाती है। आप बस से या अपने वाहन से बद्रीनाथ जा सकते हैं।

बस से बद्रीनाथ की दूरी और किराया
केदारनाथ से बद्रीनाथ की दूरी— करीब 246 किलोमीटर
केदारनाथ से बद्रीनाथ की किराया— करीब 900 से 1100 रुपये
हरिद्वार से बद्रीनाथ की दूरी— करीब 316 किलोमीटर
हरिद्वार से बद्रीनाथ की किराया— करीब 1000 से 1200 रुपये
ऋषिकेश से बद्रीनाथ की दूरी— करीब 290 किलोमीटर
ऋषिकेश से बद्रीनाथ की किराया— करीब 600 से 700 रुपये

निष्कर्ष (Conclusion)

इस लेख में ऊपर बद्रीनाथ किस हिमालय में स्थित है और बद्रीनाथ धाम के इतिहास, मान्यताएं और महत्व के बारे में चर्चा करते हुए कुछ रोचक पौराणिक कथाएं भी प्रस्तुत की गई है। साथ ही मंदिर दर्शन करने का समय तथा बद्रीनाथ धाम कैसे पहुँचे, केदारनाथ से बद्रीनाथ की दूरी आदि विषय में भी जानकारी दी हुई है। हम आशा करते हैं यह लेख पढ़ने से आपको कुछ न कुछ लाभ अवश्य मिला होगा।  

बद्रीनाथ धाम से जुड़ी प्रायः पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

बद्रीनाथ किस हिमालय में स्थित है?

यह इलाका भौगोलिक दृष्टि से गढ़वाल हिमालय में पड़ता है। बद्रीनाथ क्षेत्र हिमालय की मध्य हिमालय श्रेणी पर अवस्थित है।

बद्रीनाथ धाम के पुजारी कौन होते हैं?

बद्रीनाथ में (केदारनाथ में भी) केरल के खास ब्राह्मण कुल के पुजारीयों को ही पूजा करने का अधिकार है। कहा जाता है की ये पुजारी केरल के नंबूदरी ब्राह्मण परिवार से होते हैं। इन ब्राह्मणों को प्राचीन वैदिक धर्म और कट्टर हिंदू परंपरा के अनुयायी माना जाता है।

बद्रीनाथ मंदिर में क्या प्रसाद चढ़ाना चाहिए?

बद्रीनाथ में प्रसाद के रूप में चने की दाल (कच्ची), वन तुलसी की माला और मिश्री आदि चढ़ाना चाहिए।

भगवान विष्णु के पहले बद्रीनाथ किसका स्थान था?

कथा अनुसार बद्रीनाथ में पहले शिव पार्वती निवास करते थे। भगवान विष्‍णु को ये जगह अच्छा लगा तो उन्होनें युक्ति करके इसको अपना बनाया और यहां निवास करने लगे। कहा जाता है कि इसके बाद शिव पार्वती केदार चले गए थे।

बद्रीनाथ तीर्थ यात्रा के लिए कितने दिन चाहिए?

बद्रीनाथ धाम के दर्शन के साथ आसपास के इलाकों को देखने के लिए 2 से 3 दिन का समय पर्याप्त हो सकता है।

Leave a Comment