Puran Kitne Hai | पुराण कितने हैं और सबसे बड़ा पुराण कौन सा है?

पुराण कितने हैं और सबसे बड़ा पुराण कौन सा है इसका जवाफ जानने से पहले पुराण क्या है और पुराण का महत्व क्या है ये जान लेते हैं।

इस लेख में

तो पुराण क्या है?

पुराण का सरल अर्थ है प्राचीन आख्यान अथवा रचना। हमारे सनातन धर्म में पुराण को विशेष महत्व दिया जाता है। पुराणों को पांचवा वेद भी कहा जाता है। इन पुराणों में कही गई बातें आज भी बिलकुल प्रासंगिक तथा सही होने के साथ ही हिन्दू संस्कृति और समस्त मानव समाज की आधार बनी हुई हैं।

सामान्य लोगों के लिए वेद को समझना कठिन होने के कारण पुराण में उसी जटिल ज्ञान को सहज तथा रोचक कथाओं के माध्यम से समझाया गया है। उदाहरण स्वरूप, पुराणों में नीति, भूगोल, राजनीति, सामाजिक परम्परा, विज्ञान, ईश्वर, ऋषि मुनियों और राजाओं समेत बहुत सारे विषयों में लिखा गया है। साथ ही, पुराण में जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त की यात्रा का भी विवरण पाई जाती है।

पुराण मूल रूप से संस्कृत में लिखे गए हैं, आम लोगों के लिए इनको हिंदी और अंग्रेजी में अनुवादित किया गया है। अब आगे पुराणों की संख्या कितनी है ये बता रहे हैं।

(Puran Kitne Hai) पुराण कितने हैं?

हिन्दू धर्म में कुल 18 पुराण हैं जिनके नाम नीचे दिए गए हैं –

माना जाता है कि सभी 18 पुराणों को महृर्षि व्यास ने संस्कृत भाषा में रचना किया है।

18 पुराणों के नाम क्या हैं

इन 18 पुराणों के नाम नीचे दिए गए हैं :

1. ब्रह्म पुराण
2. पद्म पुराण
3. विष्णु पुराण
4. वायु पुराण
5. भागवत पुराण
6. नारद पुराण
7. मार्कण्डेय पुराण
8. अग्नि पुराण
9. भविष्य पुराण
10. ब्रह्मवैवर्त पुराण
11. लिङ्ग पुराण
12. वाराह पुराण
13. स्कन्द पुराण
14. वामन पुराण
15. कूर्म पुराण
16. मत्स्य पुराण
17. गरुड़ पुराण
18. ब्रह्माण्ड पुराण
शास्त्रों में लिखा है कि ब्रह्मदेव ने पुत्र मारीच से कहा था कि जो भी अपने जीवन में इन 18 पुराणों के नाम और इनके विषय सूची का पाठ करता है या पुराणों का श्रवण मात्र भी करता है तो उस व्यक्ति को सभी 18 पुराणों के बराबर ही पुण्य प्राप्त हो जाता है।

18 पुराणों के बारे में संक्षिप्त जानकारी

अब आइए जानते हैं संक्षेप में इन सभी 18 पुराणों के बारे में और साथ ही ये भी जान लेते हैं कि 18 पुराणों में सबसे बड़ा पुराण कौन सा है :

ब्रह्म पुराण (Brahma Puran)

ब्रह्म पुराण समस्त पुराणों में सब से प्राचीन है। इसे आदिपुराण भी कहा जाता है। ब्रह्म पुराण में कुल 244 अध्याय हैं और 10 हजार से ज्यादा श्र्लोक हैं।

ब्रह्म पुराण को दो भागों में विभाजित की गई है : प्रथम भाग और दूसरा भाग।

पुराण कितने हैं
Bramha Puran

अब आइए इन दोनों भागों में क्या क्या हैं उनमें से कुछ उदाहरण देखते हैं :

प्रथम भागदेव, असुर आदि की वर्णन, राम कथा, चन्द्रवंश और कृष्ण वर्णन, पृथ्वी के समस्त द्वीप, समुद्र एवं लोकों का वर्णन, नरक विवरण, सूर्य की स्तुति, पार्वती कथा आदि
दूसरा भागयमलोक वर्णन, पितरों के श्राद्ध की विधियां, वर्ण तथा आश्रम, वैष्णव धर्म, चार युग, प्रलय का वर्णन, योग आदि

पद्म पुराण (Padma Puran)

पद्म पुराण में कुल 641 अध्याय हैं तथा इसमें 48 हजार से ज्यादा श्लोक हैं।  

पद्म पुराण को पांच खंडों में बांटा गया है : सृष्टि खंड, भूमि खंड, स्वर्ग खंड, पाताल खंड और उत्तर खंड।

अब आइए इन प्रत्येक खंड में क्या क्या हैं उनमें से कुछ उदाहरण देखते हैं :  

सृष्टि खंडधर्म और इतिहास, पुष्कर माहात्म्य, ब्रह्म यज्ञ, दान, व्रत, पार्वती विवाह, तारक की कथा, ग्रह पूजन आदि
भूमि खंडशिवशर्मा, सुव्रत, वृत्रासुर, पृथु, वेन और सुनीथा, नहुष की प्राचीन कथा, अशोक सुंदरी की कथा, हुण्ड दैत्य और विहुण्ड दैत्य का वध, महात्मा च्यवन और कुञ्जल आदि
स्वर्ग खंडब्रह्मांड की उत्पत्ति, तीर्थों का वर्णन, नर्मदा नदी की उत्पत्ति कथा, कुरुक्षेत्र, काशी, गया, प्रयाग का वृत्तान्त, समुद्र मंथन, व्यास और जैमिनी बीच संवाद आदि
पाताल खंडप्रभु राम का राज्य अभिषेक, पुलस्त्य वंश, अश्वमेध, जगन्नाथ, वृन्दावन का महिमा, कृष्ण लीला, वैशाख स्नान की महिमा, दधीचि की कथा, शिव माहात्म्य, ऋषि गौतम की कथा आदि
उत्तर खंडगौरी, शिव वर्णन, दैत्य जालंधर की कथा, श्रीशैल, गंगा, प्रयाग, काशी और गया की कथा, एकादशी माहात्म्य, विष्णु सहस्त्रनाम, नरसिंह की उत्पत्ति, गीता, श्रीमद्भागवत, मत्स्य अवतार आदि

विष्णु पुराण (Vishnu Puran)

विष्णु पुराण सभी शास्त्रों के सिद्धांतों का आधार है। इसमें विष्णु भगवान को परम रूप में दर्शाया गया है। विष्णु पुराण में 126 अध्याय हैं और 7 हजार श्र्लोक हैं।

विष्णु पुराण में 6 अंश हैं : पहला अंश, दूसरा अंश, तीसरा अंश, चौथा अंश, पांचवां अंश तथा छठा अंश।

अब आइए इन प्रत्येक अंश में क्या क्या हैं उनमें से कुछ उदाहरण देखते हैं :

पहला अंशसृष्टि की वर्णन, देवता आदि, भृगु की कथा, दुर्वासा द्वारा इंद्र को श्राप, प्रह्लाद, नरसिंह अवतार आदि
दूसरा अंशछह द्वीपों, सात पाताल, नरक का वर्णन, सूर्य, सातों लोकों का वर्णन, भरत की कथा आदि
तीसरा अंशमनु और मन्वंतरों, वेदव्यास के माहात्म्य तथा उनके 28 नाम वर्णन, सामवेद तथा अथर्ववेद की शाखाओं का वर्णन, पुराणों के नाम और लक्षण, श्राद्ध का फल आदि।
चौथा अंशवंश विस्तार, ब्रह्मा और दक्ष, पुरूरबा तथा इछ्वाकु, गंगा अवतरण, विश्वामित्र के यज्ञ, सीता जी, नहुष और ययाति की कथा, कृष्ण भगवान की कथा, कलि की उत्पत्ति आदि
पांचवां अंशविष्णु भगवान के कृष्ण अवतार का वर्णन, कृष्ण लीला आदि
छठा अंशकलि, कल्प, केशिध्वज की कथा, प्रलय में ब्रह्मा स्थिति, धर्मधेनु वध, आत्मज्ञान, विष्णु नाम तथा विष्णु पुराण की प्रशंसा आदि

वायु पुराण (Vayu Puran)

वायु पुराण में विशेष रूप से शिव का वर्णन है। इस कारण इसे शिवपुराण भी कहा जाता है। वायु पुराण में कुल 112 अध्याय तथा 24 हजार श्र्लोक हैं।

शिव पुराण छह संहिताओं में विभाजित किया गया है : ज्ञान संहिता, विद्येश्वर संहिता, कैलाश संहिता, सनत कुमार संहिता, वायवीय संहिता तथा धर्म संहिता।

अब आइए इन प्रत्येक संहिता में क्या क्या हैं उनमें से कुछ उदाहरण देखते हैं :

ज्ञान संहिताब्रह्मा और नारद बीच का संवाद, 12 ज्योतिर्लिंग की वर्णन, ओंकार, शिव, शिवलिंग, शिवरात्रि का महत्व, पार्वती और शिव का विवाह, गणेश जी के सर कटने की कथा, काशी में मोक्ष प्राप्ति आदि
विद्येश्वर संहिताब्रह्मा और विष्णु के बीच युद्ध, शिवलिंग की प्रतिष्ठा विधि और मूर्ति पूजा, पंच महायज्ञ, शिव जी को बेलपत्र का महत्व, रुद्राक्ष माहात्म्य, ओंकार वर्णन आदि
कैलाश संहिताओंकार के अर्थ, शंख पूजा, गुरु पूजा और शिव पूजा, संन्यासियों के अंत्येष्टि कर्म का विधि आदि
सनत कुमार संहितासृष्टि तथा दीपों का वर्णन, नरक का वर्णन, रूद्र माहात्म्य, सनत कुमार का चरित्र वर्णन, तीर्थों, दान, धर्म-कर्म, शिव के श्मशान स्थल में रहने का कारण, काशी माहात्म्य, नंदी की तपस्या, नंदी विवाह, त्रिपुर कथा, शिवलोक वर्णन आदि
वायवीय संहिताब्रह्मा की जगत रचना, भगवान कृष्ण को पुत्र प्राप्ति, दक्ष की कथा, शिव-पार्वती संवाद, भस्म की महत्व, उपमन्यु कथा, ओम नमः शिवाय मंत्र का महत्व, शिव पूजा और उनके 112 अवतारों का वर्णन आदि
धर्म संहिताश्री कृष्ण की दीक्षा, दैत्य अंधक का वध, नित्य शिव पूजा विधि, हाथी के दान की कथा, शिव के सहस्त्र नाम, परशुराम के तुलादान, पंच ब्रह्म की कथा, अरुंधती और देवताओं बीच संवाद आदि

भागवत पुराण (Bhagavata Puran)

भागवत पुराण दो हैं। एक श्रीमद्भागवत और दूसरा देवी भागवत पुराण। कुछ लोग श्रीमद्भागवत को 18 पुराणों में समावेश करते हैं तो कुछ लोग श्रीमद्देवीभागवत पुराण को 18 पुराणों में रखते हैं। यहां दोनों के बारे में बताया जा रहा है।

श्रीमद्भागवत पुराण

श्रीमद्भागवत पुराण में 335 अध्याय हैं और इसमें 18 हजार श्लोक हैं।

श्रीमद्भागवत पुराण में 12 स्कंध हैं : प्रथम स्कन्ध, द्वितीय स्कन्ध, तृतीय स्कन्ध, चतुर्थ स्कन्ध, पञ्चम स्कन्ध, षष्टम स्कन्ध, सप्तम स्कन्ध, अष्टम स्कन्ध, नवम स्कन्ध, दशम स्कन्ध, एकादश स्कन्ध तथा द्वादश स्कन्ध।

अब आइए इन प्रत्येक स्कंध में क्या क्या हैं उनमें से कुछ उदाहरण देखते हैं :

प्रथम स्कन्धमहर्षी व्यास, पांच पाण्डव तथा राजा परीक्षित की कथा
द्वितीय स्कन्धशुक-परीक्षित संवाद, ब्रह्मा-नारद संवाद
तृतीय स्कन्धविदुर, मैत्रेय और विदुर संवाद, महर्षि कपिल द्वारा सांख्य दर्शन
चतुर्थ स्कन्धसती, ध्रुव, पृथु की कथा, राजा बर्हिष की कथा
पञ्चम स्कन्धप्रियव्रत राजा तथा उनके पुत्रों का कथा, विभिन्न लोक तथा नरक का वर्णन
षष्टम स्कन्धप्रजापति दक्ष और सृष्टि, अजामिल, वृत्रासुर, मरुद्गण की कथा
सप्तम स्कन्धप्रह्लाद का कथा, वर्णाश्रम धर्म
अष्टम स्कन्धसमुद्र मन्थन वर्णन, गजेन्द्रमोक्ष कथा, बलि  राजा, मत्स्य अवतार प्रसंग
नवम स्कन्धसूर्यवंश तथा चन्द्रवंश का वृतान्त
दशम स्कन्धभगवान कृष्ण की बाल, कुमार एवं किशोर अवस्था की गाथाएँ, व्रज तथा द्वारका में निवास
एकादश स्कन्धनारद और वसुदेव बीच संवाद, श्रीकृष्ण और उद्धव संवाद, यादवों का संहार
द्वादश स्कन्धभविष्य के राजाओं का विवरण, परीक्षित राजा के मोक्ष, वेदों की विभाजन, मार्कण्डेय की तपस्या, सूर्यदेव का वर्णन

देवी भागवत पुराण

श्रीमद्देवीभागवत पुराण में कुल 317 अध्याय हैं और इसमें श्लोक संख्या 18 हजार है।

देवी भागवत में भी 12 स्कंध हैं : प्रथम स्कन्ध, द्वितीय स्कन्ध, तृतीय स्कन्ध, चतुर्थ स्कन्ध, पञ्चम स्कन्ध, षष्टम स्कन्ध, सप्तम स्कन्ध, अष्टम स्कन्ध, नवम स्कन्ध, दशम स्कन्ध, एकादश स्कन्ध तथा द्वादश स्कन्ध।

अब आइए इन प्रत्येक स्कंध में क्या क्या हैं उनमें से कुछ उदाहरण देखते हैं :

प्रथम स्कन्ध18 महापुराण, उपपुराण के नाम, शुकदेव के जीवन कथा, नारद-व्यास संवाद, हयग्रीव अवतार, पुरूरवा, धृतराष्ट्र, विदुर व पांडु की कथा आदि
द्वितीय स्कन्धसत्यवती, मत्स्यगंधा, व्यासदेव, महामिष राजा, शांतनु राजा तथा गंगा, कर्ण, धृतराष्ट्र, श्रीकृष्ण, परीक्षित, जन्मेजय का कथा आदि
तृतीय स्कन्धनिर्गुण सगुण की कथा, सत्यव्रत ऋषि, देवदत्त ब्राह्मण, ध्रुवसंधि की कथा, जयद्रथ द्वारा द्रौपदी हरण, विश्वामित्र, सुदर्शन, श्री राम कथा, नवरात्र का व्रत आदि
चतुर्थ स्कन्धश्री कृष्ण अवतार, धेनु हरण, दिति का व्रत, प्रहलाद का राज्य आरोहण, यज्ञ, देवासुर संग्राम आदि
पञ्चम स्कन्धशिव की प्रधानता, महिषासुर, मंदोदरी, ध्रूमलोचन युद्ध, शुंभ-निशुंभ, चंड-मुंड, रक्तबीज आदि
षष्टम स्कन्धवृत्रासुर, इंद्र के मानसरोवर यात्रा की कथा, कलियुग महिमा, लक्ष्मी को शिव का वरदान, अगस्त्य तथा वशिष्ठ, जनक, नारद के पुत्र से जुड़ी कथा आदि
सप्तम स्कन्धइंद्र, सूर्य, च्यवन ऋषि, मांधाता, सत्यव्रत, हरिश्चंद्र एवं रोहित की कथा, शताक्षी देवी, सती की उत्पत्ति, तारकासुर, योग, भक्ति और ब्रह्म ज्ञान, देवी पूजा का विधान आदि
अष्टम स्कन्धवराह अवतार, सुमेरु पर्वत, नदी और देवी का वर्णन, सूर्य व चंद्रमा की गति, नरकों के नाम आदि
नवम स्कन्धदेवी की वर्णन और पूजन विधि, विष्णु और महादेव, सरस्वती कवच, कलि, कल्कि अवतार, पृथ्वी और गंगा की उत्पत्ति, तुलसी कथा, सीता हरण, द्रौपदी कथा, शिव और शंखचूड़ युद्ध, समुद्र मंथन, सावित्री सत्यवान कथा, जन्माष्टमी और शिवरात्रि व्रत, मनसा देवी, सुरभि की कथा आदि
दशम स्कन्धविंध्याचल की गति, मनु की कथा, महाकाली, मधु-कैटभ वध, शुंभ-निशुंभ वध, महिषासुर वध, भ्रामरी देवी की कथा आदि
एकादश स्कन्धनित्यक्रिया और सदाचार, रुद्राक्ष की महिमा, गायत्री की अलग अलग मुद्राएं और जाप आदि
द्वादश स्कन्धगायत्री महिमा, गायत्री सहस्त्रनाम, गायत्री स्तोत्र, गायत्री और गौतम की कथा आदि

नारद पुराण (Narada Puran)

नारद पुराण में कुल 208 अध्याय हैं तथा 25 हजार श्लोक हैं।

नारद पुराण को दो भागों मे लिखा गया है : पूर्व भाग और उत्तर भाग।

अब आइए इन दोनों भाग में क्या क्या हैं उनमें से कुछ उदाहरण देखते हैं :

पूर्व भागसूत और शौनक संवाद, सृष्टि का वर्णन, सनक का उपदेश, वेदांगों का वर्णन, शुकदेव जी की उत्पत्ति, सनत कुमार और नारद जी, गणेश, सूर्य, विष्णु, शिव और शक्ति आदि के मन्त्र, दीक्षा, पूजन, कवच, सहस्त्रनाम और स्तोत्र, दान के फल आदि
उत्तर भागगुरु वशिष्ठ द्वारा मांधाता को एकादशी व्रत का उपदेश, रुक्मांगद, मोहिनी, गंगा, गया, काशी वर्णन, कुरुक्षेत्र और हरिद्वार, बद्रीनाथ, प्रभाष और पुष्कर का महिमा, गौतम ऋषि, लक्ष्मण जी, नर्मदा वर्णन, मथुरा वृन्दावन महिमा, मोहिनी का तीर्थ यात्रा आदि

मार्कण्डेय पुराण (Markandeya Puran)

मार्कण्डेय पुराण भी अन्य पुराणों की तुलना में छोटा है। इसमें इन्द्र, अग्नि, सूर्य आदि देवों का वर्णन किया गया है। मार्कण्डेय पुराण में 137 अध्याय तथा 9 हजार श्र्लोक हैं।

अब आइए इस पुराण में क्या क्या हैं उनमें से कुछ उदाहरण देखते हैं :

मार्कण्डेय ऋषि और जैमिनी के प्रश्नोत्तर, बलभद्र, द्रौपदी के पांच पुत्र, हरिश्चंद्र की कथा, दत्तात्रेय, मदालसा की कथा, सृष्टि का वर्णन, रूद्र आदि की सृष्टि, मनु, दुर्गा की कथा, सूर्यदेव के जन्म की कथा, वत्सप्री का चरित्र, राजा अविक्षित का चरित्र, नरिष्यन्त चरित्र, इछ्वाकु चरित्र, नल चरित्र, श्रीराम कथा, कुरुवंश, सोमवंश का वर्णन, पुरुरवा की कथा, नहुष चरित्र, यदुवंश, कृष्ण की बाल एवं युवा लीला, सांख्यमत का वर्णन, मार्कण्डेय का चरित्र, पुराण श्रवण का फल आदि

अग्नि पुराण (Agni Puran)

अग्नि पुराण में अग्निदेव द्वारा ईशान कल्प का वर्णन किया गया है। अग्नि पुराण में लगभग 15 हजार श्लोक हैं।

इसके दो अलग प्रकार व भाग है: अग्नि पुराण (383 अध्याय) तथा वह्नि पुराण (181 अध्याय)।

अब आइए इन दोनों पुराणों में क्या क्या हैं उनमें से कुछ उदाहरण देखते हैं :

अग्नि पुराणअवतारों की कथा, शालग्राम पूजा, तीर्थ का महात्म्य, द्वीपों तथा लोकों की कथा, व्रत विधान, गायत्री वर्णन, लिंग स्तोत्र, राजधर्म वर्णन, धनुर विद्या, देवासुर संग्राम की कथा, आयुर्वेद, पशु चिकित्सा, वेदांगों का वर्णन, योग और ब्रह्म ज्ञान आदि
वह्नि पुराणअग्नि और ब्रह्मा के स्तुति, स्नान और भोजन की विधि, वराह, नरसिंह और वामन अवतार, अन्नदान का महात्म्य, च्यवन और नहुष, गंगा अवतार की कथा, सीता और श्री राम की कथा आदि

भविष्य पुराण (Bhavishya Puran)

भविष्य पुराण में कई विषयों समेत भविष्य की घटनाओं का भी वर्णन है। भविष्य पुराण में 485 अध्याय हैं। इस पुराण में 15 हजार श्लोक हैं।


भविष्य पुराण को 4 पर्व में विभाजित करके लिखा गया है : ब्रह्म पर्व, मध्यम पर्व, प्रतिसर्ग पर्व तथा उत्तर पर्व 

अब आइए इन प्रत्येक पर्व में क्या क्या हैं उनमें से कुछ उदाहरण देखते हैं :

ब्रह्म पर्वधर्म एवं आचार, सूर्यदेव का चरित्र, सूर्य पूजा, नाग पंचमी व्रत, सुमंतु तथा राजा शतानीक के बीच संवाद, व्रत-उपवास विधि, सूर्योपासना, संस्कारों के लक्षण, पक्ष आदि तिथि आदि
मध्यम पर्वदान और व्रत का महत्व, तिथियों के आठ कल्प, पितृकर्म, विवाह-संस्कार, यज्ञ, ‍अन्नप्राशन, मन्त्रोपासना, व्रतों का सम्पूर्ण वर्णन आदि
प्रतिसर्ग पर्वपृथ्वीराज चौहान, पेशवा माधवराव, अलाउद्दीन, तैमूरलंग, बाबर तथा अकबर, जगद्गुरु आदिशंकराचार्य, श्रीरामानुजाचार्य, श्रीचैतन्य महाप्रभु, मीराबाई, गुरु नानक, तुलसीदास, सूरदास, कबीरदास आदि
उत्तर पर्वविष्णु भगवान की माया के फलस्वरूप नारद जी के मोहित होने का कथा, स्त्री को सौभाग्य के लिए व्रतों का विवरण आदि

ब्रह्म वैवर्त पुराण (Brahma Vaivarta Puran)

ब्रह्मवैवर्त पुराण में भगवान सावर्णि द्वारा देवर्षि नारद को उपदेश दिया गया है। इस पुराण में कुल 276 अध्याय हैं तथा 18 हजार श्लोक हैं। ब्रह्मवैवर्त पुराण चार खंडों में विभाजित है : ब्रह्म खंड, प्रकृति खंड, गणेश खंड तथा श्रीकृष्ण खंड। 

अब आइए इन प्रत्येक खंड में क्या क्या हैं उनमें से कुछ उदाहरण देखते हैं :

ब्रह्म खंडसृष्टि वर्णन, नारद और ब्रह्मा का विवाद, शिवजी द्वारा नारद मुनि को उपदेश
प्रकृति खंडसावर्णि और नारद बीच संवाद, श्री कृष्ण भगवान, प्रकृति और इनके कलाओं का महत्व
गणेश खंडपार्वती द्वारा पुण्यक नामक महाव्रत, कार्तिकेय और गणेश, अर्जुन और परशुराम
श्रीकृष्ण खंडश्री कृष्ण, उनका गोकुल वास, उनके लीलाओं का वर्णन, कंस वध, सान्दीपनि ऋषि से विद्याग्रहण, कालयवन वध, द्वारका गमन, नरकासुर वध आदि की कथा

लिङ्ग पुराण (Linga Puran)

लिङ्ग पुराण में शिवजी द्वारा अग्निलिंग में स्थित होकर ब्रह्मा जी को उपदेश दिया गया है। इसमें शिव के 28 अवतारों की कथाएँ समेत उनकी उपासना का वर्णन भी है। लिङ्ग पुराण में 163 अध्याय हैं और 11 हजार श्लोक हैं।

लिङ्ग पुराण दो भागों में विभाजित है : पूर्व भाग तथा उत्तर भाग।

अब आइए इन दोनों भागों में क्या क्या हैं उनमें से कुछ उदाहरण देखते हैं :

पूर्व भागब्रह्मांड की उत्पत्ति, शिव पूजा, लिंग पूजा, शैव-महिमा का वर्णन, शिव के मुख्य चार स्थलों का वर्णन, गंगा की उत्पत्ति, ग्रहों का वर्णन, पराशर, कृष्ण अवतार, त्रिपुर की कथा, काशी महात्म्य, वराह और नरसिंह अवतार, पार्वती और शिव विवाह आदि
उत्तर भागविष्णु महात्म्य, लक्ष्मी प्राप्ति के माध्यम, शिव स्तुति, शिव पूजा विधि, तुलादान, अनेक दानों की विधियां, मृत्युंजय विधि, लिंग पुराण के पढ़ने या श्रवण करने का फल आदि

वाराह पुराण (Varaha Puran)

वाराह पुराण में विष्णु के वराह अवतार के बारे में बताया गया है। इस पुराण को कुल 218 अध्याय में लिखा गया है और इसमें 11 हजार करीब श्र्लोक हैं।

वाराह पुराण दो भागों में विभाजित है : पूर्व भाग तथा उत्तर भाग।

अब आइए इन दोनों भागों में क्या क्या हैं उनमें से कुछ उदाहरण देखते हैं :

पूर्व भागपृथ्वी और वाराह का संवाद, श्राद्धकल्प का वर्णन, गौरी की उत्पत्ति, विनायक, नागगण, कार्तिकेय, आदित्यगण, सत्यतपा के व्रत कथा, अगस्त्य गीता, रूद्र गीता, व्रत और तीर्थों की कथाएँ, विभिन्न प्रकार के अपराधों का प्रायश्चित, मथुरा की महिमा, श्राद्ध विधि, यमलोक का वर्णन आदि
उत्तर भागपुरुराज पुलस्त्य संवाद, धर्मों की व्याख्या, पुष्कर पर्व का वर्णन आदि

स्कन्द पुराण (Skanda Puran)

18 पुराणों में सबसे बड़ा पुराण कौन सा है इसी का जवाफ है स्कन्द पुराण। इस में ब्रह्मा जी द्वारा की गई शिवजी की महिमा का सार है। यह पुराण शिव पुत्र स्कन्द के नाम पर है। स्कन्द पुराण में लगभग 80 हजार से भी ज्यादा श्लोक हैं।

नारद पुराण में बताए गए अनुसार स्कंद पुराण के सात खंड हैं : माहेश्वर खंड, वैष्णव खंड, ब्रह्म खंड, काशी खंड, अवनति खंड, नागर खंड तथा प्रभास खंड।   

Skanda Puran
Skanda Puran

अब आइए इन प्रत्येक खंड में क्या क्या हैं उनमें से कुछ उदाहरण देखते हैं :

माहेश्वर खंडदक्ष, शिव, शिव विवाह, शिव महात्म्य, समुद्र मंथन, नहुष, वृत्रासुर, दधीचि, वलि और वामन अवतार, शिवरात्रि व्रत, दान का महत्व, सोमनाथ की उत्पत्ति, कर्म फल, काली चरित, गायत्री महात्म्य आदि
वैष्णव खंडअयोध्या का महात्म्य, मार्कण्डेय, दुर्वासा की कथा, सुवर्णमुखरी नदी के माहात्मय, मतंग और अंजन के संवाद, पुरुषोत्तम क्षेत्र का माहात्मय, नीलकण्ठ और नरसिंह, अश्वमेघ यज्ञ, रथयात्रा विधि, इंद्रादि अवतार आदि
ब्रह्म खंडधर्मारण्य, हयग्रीव की कथा, देवासुर संग्राम, शिव मंत्र, गोकर्ण, रुद्राक्ष महात्म्य, काश्मीर राजा की कथा, पुराण श्रवण का फल, वेतालतीर्थ का माहात्म्य, सेतु माहात्म्य, रामेश्वर की महिमा, सेतु यात्रा, कर्मसिद्धि का उपाख्यान, ऋषिवंश का निरूपण आदि
काशी खंडविंध्याचल, यमलोक का वर्णन, अन्य लोकों का वर्णन, गंगा, काशी वृत्तांत, गृहस्थ धर्म, मृत्यु के लक्षण, विशेश्वर की कथा, काशी और शिवलिंग, सती देह त्याग की कथा आदि
अवनति खंडब्रह्मा के मस्तक छेदन, अग्नि की उत्पत्ति, शिवस्तोत्र, कपालमोचन, महाकालेश्वर, केदारेश्वर, रामेश्वर आदि का वर्णन, शिप्रा स्नान का फल, नागों द्वारा शिव स्तुति,
हिरण्याक्ष वध, नाग पञ्चमी, विष्णुसहस्त्रनाम, नर्मदा माहात्म्य, युधिष्ठिर मार्कण्डेय संवाद, गौरीव्रत, शची हरण, अभ्रक वध, चित्रसेन, देवशिला की कथा आदि
नागर खंड –हरिश्चंद्र, विश्वामित्र की कथा, त्रिशंकु, वृत्रासुर वध, जमदग्नि वध, परशुराम द्वारा क्षत्रियों के संहार, धर्मराज, मकरेश की कथा, ब्रह्मा का यज्ञ अनुष्ठान, सावित्री की कथा, युधिष्ठिर भीष्म संवाद, निम्बेश्वर और शाकम्भरी की कथा आदि
प्रभास खंडविश्वनाथ, सोमनाथ, सिद्धेश्वर वर्णन, तप्तकुण्ड की महिमा, चतुर्मुख गणेश तथा कलम्बेश्वर की कथा, मार्कण्डेय की उत्पत्ति, देवमाता की उत्पत्ति, उमा महेश्वर का माहात्म्य, गंगाधर तथा मिश्रक, चंद्रशर्मा की कथा, एकादशी व्रत आदि

वामन पुराण (Vaman Puran)

वामन पुराण में वामन अवतार को विस्तार से वर्णन की गई है। वामन पुराण में 55 अध्याय हैं और इसमें लगभग 10 हजार श्लोक हैं।

वामन पुराण दो भागों में बांटा गया है : पूर्व भाग तथा उत्तर भाग।

अब आइए इन दोनों भागों में क्या क्या हैं उनमें से कुछ उदाहरण देखते हैं :

पूर्व भागकपालमोचन, दक्ष, प्रह्लाद नारायण युद्ध, देवासुर संग्राम, दुर्गा चरित्र, कुरुक्षेत्र वर्णन, पार्वती कथा, अन्धक वध की कथा, अरजा की कथा, राजा बलि, लक्ष्मी, धुन्धु चरित्र, नक्षत्र पुरुष की कथा, त्रिविक्रम चरित्र, प्रह्लाद बलि संवाद आदि
उत्तर भागश्री कृष्ण वर्णन, जगदम्बा अवतार की कथा, सूर्य की महिमा, शिव तथा गणेश चरित्र का वर्णन आदि

कूर्म पुराण (Kurma Puran)

कूर्म पुराण में विष्णु के कूर्म अवतार का वर्णन किया गया है। इस पुराण में वेदों का संक्षिप्त सार दिया गया है। कूर्म पुराण में 96 अध्याय हैं और इसमें 18 हजार श्र्लोक हैं।

कूर्म पुराण के दो भाग हैं : पूर्व भाग तथा उत्तर भाग।

अब आइए इन दोनों भागों में क्या क्या हैं उनमें से कुछ उदाहरण देखते हैं :  

पूर्व भागवर्णाश्रम धर्म, संसार की रचना, देवी अवतार, भृगु और मनु, हिरण्यकश्यपु और अंधक, वामन अवतार, तीर्थ यात्रा का वर्णन, प्रयाग महात्म्य, द्वीपों का वर्णन, यमुना महात्म्य, मन्वंतरों की कथा आदि
उत्तर भागज्ञान योग, अष्टांग योग का वर्णन, भोजन विधि, श्राद्ध के नियम, वानप्रस्थ और संन्यास धर्म, प्रलय, तीर्थों के महात्म्य आदि

मत्स्य पुराण (Matsya Puran)

मत्स्य पुराण में व्यासजी ने धरती पर सात कल्पों के बारे में संक्षेप में बताया है। मत्स्य पुराण में 291 अध्याय हैं। इस पुराण में श्लोकों की संख्या लगभग 14 हजार है। 

अब आइए इस पुराण में क्या क्या हैं उनमें से कुछ उदाहरण देखते हैं :

ब्रह्माण्ड वर्णन, ब्रह्मा, देव तथा असुर की उत्पत्ति, मनु मत्स्य संवाद, मदनद्वादशी, लोकपाल पूजा, पृथु के राज्य वर्णन, पितृवंश का वर्णन, सोमवंश का वर्णन, ययाति, अर्जुन का चरित्र, विष्णु के दस अवतार, ध्रुव महिमा, पितरों की महिमा, चार युग, वज्राङ्ग, तारकासुर की उत्पत्ति, शिव पार्वती विवाह, तारकासुर वध, नरसिंह की कथा, वाराणसी माहात्म्य, सावित्री की कथा, समुद्र मंथन, वास्तु विद्या, भविष्य के राजाओं का वर्णन आदि

गरुड़ पुराण (Garuda Puran)

भगवान विष्णु द्वारा गरुड़ को सुनाए गए आख्यान ही गरुड़ पुराण है। गरुड़ पुराण में कुल 288 अध्याय हैं और इसमें 19 हजार श्लोक हैं। 

गरुड़ पुराण 2 खंड में विभाजित है : पूर्व खंड तथा उत्तर खंड।

अब आइए इन दोनों खंडों में क्या क्या हैं उनमें से कुछ उदाहरण देखते हैं :

पूर्व खंडविष्णु लक्ष्मी की पूजन विधि, सूर्य पूजा, शिव पूजा, दुर्गा पूजा, प्रियव्रत वंश, भारतवर्ष, पाताल और नरक वर्णन, स्त्रियों के लक्षण, मनुपुत्रों का वर्णन, गृह शांति, वानप्रस्थ और संन्यासी धर्म, जन्मेजय के वंश, रामायण कथा, रोगों की औषधि, पशुओं की उपचार, विष्णु कवच, प्रलय वर्णन, योगों का वर्णन, ब्रह्म ज्ञान, आत्मज्ञान, गीतासार आदि
उत्तर खंडविष्णु और गरुड़ प्रश्नोत्तर, नरकों का वर्णन, शवदाह विधि, प्रेत योनि छुड़ाने का उपाय, यमलोक का मार्ग, मनुष्यों की आयु निर्धारण, जीव की उत्पत्ति, सांड़ को छोड़ने का विधि, पूर्व जन्म के कर्मों का फल, वार्षिक श्राद्ध, गरुड़ पुराण को पढ़ने और श्रवण करने का फल आदि

ब्रह्माण्ड पुराण (Brahmanda Puran)

ब्रह्माण्ड पुराण में भविष्यकल्पों की कथा प्रस्तुत की गई है। ब्रह्मांड पुराण में कुल 142 अध्याय हैं और इसमें श्लोकों की कुल संख्या 12 हजार है।

ब्रह्माण्ड पुराण के चार पाद हैं : प्रक्रियापाद, अनुषंगपाद, उपोद्घातपाद तथा उपसंहारपाद

अब आइए इन प्रत्येक पाद में क्या क्या हैं उनमें से कुछ उदाहरण देखते हैं :

प्रक्रियापादनैमिष, हिरण्यगर्भ की कथा, कर्तव्य तथा उपदेश आदि
अनुषंगपादमानुषी सृष्टि, रूद्र सृष्टि, प्रियव्रत वंश परिचय, भारतवर्ष का वर्णन, द्वीपों का वर्णन, ग्रहों की गति विश्लेषण, शिव के नीलकण्ठ होने का कारण, अमावस्या वर्णन, युग अनुसार प्रजा के लक्षण, पृथ्वी दोहन आदि
उपोद्घातपादप्रजापति वंश, कश्यप की वंश, मनु पुत्रों का वंश, अत्रि के वंश, यदु वंश आदि के वर्णन, परशुराम, भार्गव, ययाति चरित्र, कार्तवीर्य वध, कृष्णावतार वर्णन, विष्णु माहात्म्य, कलियुग के राजाओं का चरित्र आदि
उपसंहारपादभविष्य के मनुओं का चरित्र, चौदह भुवन वर्णन, शिवलोक का वर्णन, परमात्मा के स्वरूप का प्रतिपादन आदि

निष्कर्ष (Conclusion) :

इस लेख में हम ने शुरू में पुराण क्या है तथा पुराण कितने हैं इस विषय में चर्चा किया। फिर हमने पुराणों की संख्या कितनी है, 18 पुराणों के नाम, 18 पुराणों में सबसे बड़ा पुराण कौन सा है इन प्रश्नों के जवाफ देने के साथ ही इन प्रत्येक पुराण के बारे में संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत किया है।

पाठक कृपया जान लें कि कई अलग अलग धर्मग्रन्थों और मान्यताओं के आधार पर तयार की गई इस लेख में कुछ विषयों पर मतभेद देखी जा सकती है जैसे कि पुराणों की अध्याय सख्या, श्लोक सख्या, पुराणों की भाग अथवा खंड के नाम या सख्या आदि। इस बात के लिए क्षमा मांगते हुए आपका कोई भी सुझाव को हम स्वागत करते हैं। कृपया नीचे कमेंट करके अपना अमूल्य राय बताएं।

18 पुराण से जुड़ी हुई अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

18 पुराणों की रचना किसने की?

कृष्ण द्वैपायन अर्थात वेदव्यास ने 18 पुराणों की रचना की। माना जाता है कि महर्षी वेदव्यास ने पुराणों की संकलन करके संस्कृत भाषा में सभी 18 पुराणों की रचना किया था।

कौन सा पुराण सबसे लोकप्रीय है?

वैसे तो सभी पुराणों में अनेक प्रकार की कथाएं तथा ज्ञान दिया गया है इसलिए इन सभी पुराणों को समान रूप से देखा जाना चाहिए पर ऐसा लगता है कि भागवत पुराण की प्रसिद्धि और लोकप्रियता अन्य पुराणों से कुछ अधिक है।

सबसे छोटा पुराण कौन सा है?

अठारह पुराणों में से सबसे छोटा पुराण ब्रह्म पुराण है। एक और मत अनुसार मार्कण्डेय पुराण को सबसे छोटा पुराण माना जाता है। 

पुराणों में सबसे बड़ा पुराण कौन सा है?

स्कंद पुराण सबसे बड़ा पुराण है जिसमें 80 हजार से ज्यादा श्लोक हैं। इस पुराण का नाम शिव और पार्वती के पुत्र स्कंद के नाम पर रखा गया है।

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