आप निश्चय ही चार वेद किसने लिखे तथा चार वेद कौन-कौन से हैं ये जानने के लिए उत्सुक होंगे पर इससे पहले वेदों के बारे में कुछ जानकारी लें।
वेदों को सृष्टि के समस्त ज्ञान का अथाह स्रोत तथा सनातन धर्म के बहुत ही महत्त्वपूर्ण एवं प्राचीन धार्मिक ग्रंथों के रूप में लिया जाता है। वेदों को सनातन संस्कृति और दार्शनिक परंपराओं का प्रमुख स्रोत माना जाता है।
वेद भारत का है, सनातन धर्मका का भी है – पर मेरे विचार में वेद तो इससे भी ऊपर पूरे विश्व के लिए एक वैदिक संविधान है जो परिवर्तन नहीं होता। अनादि काल से मौजूद ये वेद विभिन्न विषयों पर समर्पित हैं।
आज के इस लेख में हम चार वेद किसने लिखे, चार वेद कौन-कौन से हैं, चार वेदों के नाम और इन प्रत्येक वेद में क्या हैं इन्हीं विषयों पर चर्चा करेंगे।
चार वेद में क्या है और वेदका महत्व क्या है :
पुरातन ज्ञान का अथाह भंडार वेद न सिर्फ हिन्दू धर्म की प्राचीन और पवित्र धर्मग्रंथ है बल्कि वेद को दुनिया का ही प्रथम धर्मग्रंथ माना जा सकता है। इन्हीं वेदों में दिए गए ज्ञान को अपने तरीके से व्याख्या तथा प्रचार करके दुनिया के अन्य धर्मों की शुरुवात हुई। ईश्वर द्वारा ऋषियों एवं मुनियों को सुनाए गए ज्ञान ही वेद का आधार है। इसीलिए वेद को ‘श्रुति’ कहा गया है अर्थात जो सुना गया हो।
वेदों में अनेकों संख्या में मंत्र, सूक्ति तथा विचार व्यक्त किए गए हैं जो जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझाने में हमें मदद करते हैं। चार वेद में हर समस्या का समाधान मिलता है। चार वेदों में ईश्वर, ब्रह्मांड, गणित, रसायन, औषधि, भूगोल, चिकित्सा एवं धार्मिक रीति-रिवाज समेत कई सारी विषयों में ज्ञान दिया गया है।
इन वेदों के माध्यम से मनुष्य को अपने आध्यात्मिक और सामाजिक जीवन के नियमों का पालन करने के लिए मार्गदर्शन प्राप्त होता है। वेदों को अनन्त और कालातीत माना जाता है, जो सृष्टि के आरंभ से विद्यमान हैं। ऐसा माना जाता है कि उनमें ब्रह्मांड, मानव अस्तित्व और वास्तविकता के बारे में अंतिम सत्य उजागर किया गया है।
नोट : प्रत्येक वेद के रचना में चार उपखंड होते हैं - 1. संहिताएँ – इनमें मंत्र और आशीर्वाद होते हैं 2. आरण्यक – इनमें अनुष्ठान, समारोह, और बलिदान के बारे में पाठ होते हैं 3. ब्राह्मण – इनमें अनुष्ठान, समारोह और बलिदान के ऊपर टिप्पणी होते हैं 4. उपनिषद – इनमें दर्शन और आध्यात्मिक ज्ञान प्रस्तुत हैं
वेदों की उत्पत्ति कैसे हुई :
वेदों की उत्पत्ति के बारे में निश्चित तथा वास्तविक जानकारी उपलब्ध नहीं होने के कारण वेदों की उत्पत्ति के बारे में कई मान्यताएं स्थापित हुए हैं, लेकिन सटीक और निश्चित कारणों के बारे में यकिन से बताया नहीं जा सकता। नीचे हम कुछ मान्यताओं के बारे में उल्लेख कर रहे हैं जो वेदों की उत्पत्ति के विभिन्न कारणों को व्यक्त करते हैं:
ऋषियों द्वारा दिव्य अनुभव :
एक मान्यता के अनुसार, वेदों की उत्पत्ति ऋषियों द्वारा अपने अद्भुत दिव्य अनुभव के परिणामस्वरूप हुई। ये ऋषियां अपनी साधना के दौरान गहरे ध्यान में रहते थे और इस प्रक्रिया के दौरान दिव्य स्रोतों के माध्यम से वेदों के मन्त्रों को अपने मनस्थिति से प्राप्त करते थे।
ऋषियों ने ध्यान, तपस्या और धार्मिक साधना के माध्यम से ईश्वरीय ज्ञान प्राप्त किया और इसे वेदों के रूप में प्रकट किया। यही कारण है जो वेदों को आध्यात्मिकता और दिव्यता से युक्त बनाता है।
अनुभव के अवधारणा :
कुछ मान्यताओं के अनुसार, वेदों की उत्पत्ति मनुष्यों के आदिकालीन अनुभवों के परिणामस्वरूप हुई। वेदों के वचनों का दावा है कि ये आदिकाल से हमारी मानसिक और आध्यात्मिक अवधारणाओं को प्रतिबिंबित करते हैं।
ऐसा माना जाता है कि वेदों की उत्पत्ति मनुष्यों के अनुभवों, आध्यात्मिक तत्वों और धार्मिक विचारों के प्रभाव से हुई है।
वेदों की उत्पत्ति के सन्दर्भ में एक पौराणिक कथा अनुसार ब्रह्माजी के चार मुख से वेदों की उत्पत्ति हुई। फिर ब्रह्माजी का ही अंश अर्थात उनके पुत्र अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा ये चार ऋषि ने तपस्या करके ब्रह्माजी से ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद का ज्ञान को प्राप्त किया और इस प्रकार वेदों की रचना हुई।
चार वेद किसने लिखे :
वेदों की रचना मानव लेखकों द्वारा नहीं की गई थी। वेदों की उत्पत्ति मानव बुद्धि से ऊपर स्थित ऋषियों के द्वारा हुई है, जिन्होंने आध्यात्मिक ज्ञान के माध्यम से इसे प्राप्त किया। वेद कोई एक व्यक्ति द्वारा नहीं बल्कि वैदिक ज्ञान के विकास में योगदान देनें वाले कई ऋषियों का सामूहिक प्रयास से अस्तित्व में आया है।
वेद ईश्वर की वाणी है जिसे ऋषियों ने उनके दिव्य शक्ति से सुना था। इसलिए वेदों को अक्सर श्रुति साहित्य कहा जाता है, जिसका अर्थ है “जो सुना जाता है।”
प्रारंभ में, वेदों को एक मौखिक परंपरा के माध्यम से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक प्रसारित किया जाता था। बाद में, किसी भी क्षति या विकृति को रोकने के लिए उन्हें लिखित रूप में तयार किया गया। माना जाता है कि बाद में वेदों को महर्षि वेदव्यास द्वारा सङ्कलन करके इन्हें व्यवस्थित कर चार भागों में विभाजित किया गया है।
नोट: वेद को निसंदेह मानव सभ्यता के सबसे पुराने ग्रन्थ माना जा सकता है। भारत में वेदों की कई हजार पांडुलिपि सुरक्षित रखी हुई हैं। इनमें से ऋग्वेद की बहुत ही महत्वपूर्ण 30 पांडुलिपि हैं जिन्हें UNESCO के सांस्कृतिक धरोहरों की सूची में समावेश किया है।
चार वेदों के नाम क्या हैं तथा वेद के कितने शाखाएं हैं :
वेद चार हैं अर्थात वेद के चार शाखाएं हैं:
- ऋग्वेद
- यजुर्वेद
- सामवेद
- अथर्ववेद
इन प्रत्येक वेदों के एक एक उपवेद भी होते हैं जो इस प्रकार है:
- ऋग्वेद का उपवेद है आयुर्वेद : आयुर्वेद में स्वास्थ्य के लिए आवश्यक प्राकृतिक औषधि या जडिबुटियों द्वारा उपचार से संबंधित ज्ञान दी गई है।
- यजुर्वेद का उपवेद है धनुर्वेद : धनुर्वेद में शत्रु से सुरक्षा तथा युद्ध के तौर तरीकों जैसे की धनुष विद्या के बारे में ज्ञान दी गई है।
- सामवेद का उपवेद है गंधर्ववेद : गंधर्ववेद में संगीत से संबंधित जानकारी पाई जाती है।
- अथर्ववेद का उपवेद है शिल्पवेद अथवा स्थापत्यवेद : शिल्पवेद में भवन आदि निर्माण करने में आवश्यक वास्तु शास्त्र या वास्तुकला संबंधी ज्ञान दी गई है।
नोट : आयुर्वेद (चिकित्सा) का संबंध ऋग्वेद और अथर्ववेद दोनों से जुड़ा हुआ है। अथर्ववेद और ऋग्वेद दोनों में ही रोगों का उपचार और औषधि के बारे में उल्लेख किया गया है। इस के कारण अनेकों धर्मशास्त्रों के अनुसार आयुर्वेद को ऋग्वेद का उपवेद माना गया है तो कई विद्वान और शोधकर्ता आयुर्वेद को अथर्ववेद का उपवेद मानते हैं।
आपने चार वेद कौन-कौन से हैं, वेद किसने लिखे तथा चार वेदों के नाम तो जान लिया अब जानें कौन सा वेद में क्या है –
1. ऋग्वेद :
ऋग्वेद सबसे पुराना वेद है। ऋक शब्द स्थिति और ज्ञान से संबंधित है। ऋग्वेद में देवी देवताओं की स्तुति, यज्ञ की महत्व, विज्ञान, स्वास्थ्य, औषधि, नैतिक ज्ञान तथा समाज आदि के बारे में बताया गया है।
इस वेद में देवताओं की प्रशंसा, आराधना तथा ऋषियों के अनुभवों को व्यक्त किया गया है। सारांश में कहें तो ऋग्वेद में सृष्टि, प्रकृति, यज्ञ, मनुष्य और दिव्यता के विषयों पर चर्चा की गई है।
ऋग्वेद एक पद्यात्मक शैली में लिखी गई ग्रन्थ है। ऋग्वेद में कुल 10 अध्याय हैं जिसको मंडल कहा जाता है। ऋग्वेद में 1028 सूक्त हैं जिसमें लगभग 11 हजार मंत्र हैं।
ऋग्वेद में देवताओं के आवाहन तथा उनकी प्रार्थना करने के मंत्रों के बारे में बताया गया है। इस वेद में जल, वायु तथा सौर चिकित्सा आदि की जानकारी दी गई है। साथ ही इस वेद में हवन द्वारा स्वास्थ्य की प्राप्ति के विषय में उल्लेख है।
ऋग्वेद में अनेक रोगों की औषधि का वर्णन किया गया है। ऋग्वेद ही है जिसमें ऋषि च्यवन को दिव्य औषधियों के सहारे पुनः युवा अवस्था में लाने की प्रसंग मिलती है।
2. यजुर्वेद :
यजुर्वेद को गद्यात्मक शैली में प्रस्तुत की गई है। यजुर्वेद में यज्ञ की विशेष विधियां और इसके लिए आवश्यक मंत्रों का संग्रह है। इसमें यज्ञों के नियम, विधि और मंत्र के उच्चारण के लिए आवश्यक होने वाले मंत्रों को विशेष शैली के बारे में जानकारी प्रस्तुत की गई है। अर्थात यजुर्वेद में यज्ञ करने के पहले, यज्ञ के दौरान और यज्ञ के बाद अनुसरण की जाने वाली प्रक्रियाओं की व्याख्या की गई है।
यजुर्वेद में यज्ञ के साथ साथ तत्वज्ञान अर्थात रहस्यमयी ज्ञान का भी वर्णन है जो की आत्मा, ईश्वर और पदार्थ का ज्ञान है।
यजुर्वेद की दो शाखाएं हैं : शुक्ल और कृष्ण
कृष्ण यजुर्वेद :
कृष्ण यजुर्वेद में यज्ञ करने की विधियां और मंत्र होते हैं। कृष्ण यजुर्वेद की चार उप शाखाएं होती हैं।
शुक्ल यजुर्वेद :
शुक्ल यजुर्वेद में यज्ञ के साथ साथ दान, व्रत, उपासना, आराधना और मन्त्रों की महत्व पर चर्चा की गई है। इसके अलावा, यजुर्वेद में वैद्य और कृषि संबंधी विषय में भी ज्ञान दी गई है। शुक्ल यजुर्वेद की दो उप शाखाएं हैं और इसमें 40 अध्याय हैं।
3. सामवेद :
सामवेद में संगीत और गायन संबंधी मंत्रों का संग्रह है। साम का अर्थ है रूपांतरण और संगीत। इस वेद में ऋग्वेद की मंत्रों को संगीतमय रूप मे प्रस्तुत की गई है। सामवेद को संगीत या गायन शास्त्र का महत्वपूर्ण स्रोत के रूप में माना जाता है।
सामवेद में लगभग 1800 से ज्यादा मंत्र दिए गए हैं। पर इस वेद के कुछ ही मंत्रों को छोड़कर प्राय सभी मंत्रों को ऋग्वेद से ही लिया गया है।
4. अथर्ववेद :
अथर्ववेद बाकी तीन वेदों से अलग है। इसमें रहस्यमयी विद्याओं, जड़ी बूटियों, चमत्कार और आयुर्वेद आदि के विषय में चर्चा की गई है। इस वेद में भूत, वर्तमान और भविष्य के अलावा रोगनिदान तथा चिकित्सा जैसी विषयों पर वर्णन किया गया है। अथर्ववेद में 20 अध्याय, 730 सूक्त और लगभग 6000 मंत्र है।
निष्कर्ष (Conclusion) :
इस लेख में चार वेद किसने लिखे और चार वेदों के नाम तथा महत्व समेत चार वेद के बारे में सारी जानकारी देने की प्रयास की गई है। हिंदू धर्म में चार वेदों को दिव्य ज्ञान और आध्यात्मिक मार्गदर्शन के स्रोत के रूप में लिया जाता है। ये वेद हमेसा से भारत के धार्मिक, दार्शनिक और सांस्कृतिक परिदृश्य को आकार देने में सहायक रहे हैं। इनकी उत्पत्ति सदा एक रहस्य रहा है, पर वेदों मे प्रस्तुत की गई शिक्षाएं सत्य के चाहने वालों को प्रेरित करती हैं। चार वेद प्राचीन भारतीय सभ्यता की स्थायी विरासत के रूप में खड़े हैं।
चार वेद संबंधी प्राय पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ) :
चार वेद को किसने लिखा था?
वेदों को ईश्वर की वाणी माना जाता है। वेद किसी इंसान का काम न होकर इन्हें ‘अपौरुषेय’ माना जाता है। सनातन धर्म के अनुसार, मर्हषी व्यास को वेदों के संकलनकर्ता माना जाता है, जिन्होंने वेद मंत्रों को चार अलग अलग संहिताओं में व्यवस्थित किया।
कौन सा वेद सबसे लंबा वेद है?
चार वेदों में सबसे बड़ा वेद है ऋग्वेद। ऋग्वेद के ही कई छंद अन्य वेदों में भी मौजूद हैं।
कौन सा वेद सबसे छोटा वेद है?
आकार की हिसाब से चारों वेदों में सबसे छोटा वेद है सामवेद। सामवेद के कुछ ही मन्त्रों को छोड़ कर बाकी सारे मन्त्र ऋगवेद के ही हैं।
वेद कौन सी भाषा में लिखी गई है?
वेद के भाषा को पुरानी संस्कृत अर्थात वैदिक संस्कृत भाषा कहा जाता है। यह भाषा लौकिक संस्कृत से अलग है।
सभी चार वेदों को मिलाकर कुल कितने मंत्र हैं?
चार वेदों को मिलाकर कुल 20416 मन्त्र हैं।
पांचवा वेद किसे माना जाता है?
सनातन धर्म में कई मान्यताओं के आधार पर नाट्यशास्त्र को पांचवा वेद माना जाता है। कहीं पर महाभारत को पांचवा वेद बताया गया है।