अमरनाथ गुफा अर्थात अमरनाथ मंदिर हिन्दुओं के लिए बहुत ही खास और प्रसिद्ध तीर्थ है जहां बर्फ से बना हुआ शिवजी की प्राकृतिक शिवलिंग के दर्शन किया जा सकता है। अमरनाथ गुफा का रहस्य यही अद्भुत हिम शिवलिंग है जिसके दर्शन पाने के लिए लाखों में तीर्थयात्री कठोर यात्रा पूरा कर लेते हैं। अमरनाथ की यह पवित्र गुफा शिवजी के भक्तों के लिए एक अत्यन्त महत्वपूर्ण एवं विशेष तीर्थ स्थल है। इस अद्भुत गुफा को प्राचीन समय में अमरेश्वर या अमरेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता था।
प्रत्येक साल लाखों की संख्या में तीर्थयात्री इस पवित्र गुफा की यात्रा करते हैं। इस यात्रा को अमरनाथ यात्रा कहा जाता है तथा ये यात्रा आषाढ़ पूर्णिमा से शुरू होता है और रक्षा बंधन तक चलता है। इस पवित्र एवं अद्भुत हिमलिंग दर्शन के लिए पूरे श्रावन महीने में लाखों लोग यहां आते हैं। हिंदू धर्म में अमरनाथ यात्रा का बहुत ही खास महत्व है।
अमरनाथ गुफा कहां है
पवित्र अमरनाथ गुफा भारत के जम्मू कश्मीर राज्य के श्रीनगर शहर के उत्तर-पूर्व की और हिमालय की गोदी में स्थित है। श्रीनगर से अमरनाथ गुफा करीब 140 किलोमीटर (पहलगाम के रास्ते से) दूर है। समुद्र तल से इसकी ऊंचाई लगभग 3900 मीटर है।
अमरनाथ गुफा का रहस्य
अमरनाथ गुफा का रहस्य यही है कि इस पवित्र गुफा में बर्फ से निर्मित शिवलिंग का दर्शन प्राप्त हो जाता है। बाबा अमरनाथ की गुफा की लंबाई करीब 19 मीटर, चौड़ाई 16 मीटर और ऊंचाई 11 मीटर है। गुफा के एक तरफ ऊपर से बर्फ के पानी की बूंदें गिरती हैं, जो एक जगह पर जमने से करीब 3 मीटर ऊंचा शिवलिंग बन जाता है।
चन्द्रमा के आकार में परिवर्तन के साथ ही इस बर्फ के शिवलिंग का आकार भी कम-बेसी होता रहता है। आप को बता दें कि श्रावण पूर्णिमा के दिन यह पूर्ण आकार में आता है और अमावस्या तक धीरे-धीरे आकार घटता जाता है। श्री अमरनाथ के शिवलिंग जहां स्थित है उस स्थान से कुछ ही दूर माता पार्वती, श्री गणेश और भैरव भी इस गुफा में हिम शिवलिंग के रूप में मौजूद हैं।
बताया जाता है कि अमरनाथ गुफा देवी के 51 शक्तिपीठ में से एक शक्तिपीठ भी है। इसे महामाया शक्तिपीठ कहते हैं। कहा जाता है कि यहां पर देवी सती के गला (कंठ) गिरा था जिसके कारण इस स्थान पर शक्तिपीठ की स्थापना हुई थी।
हिम शिवलिंग के साथ शक्तिपीठ का भी मौजूद होने से भक्तों के लिए इस गुफा के महिमा तथा विशेषता और बढ़ जाती है।
अमरनाथ गुफा का इतिहास
पुरातत्व विभाग के आंकड़ा अनुसार अमरनाथ गुफा करीब 4 से 5 हजार वर्ष पुराना हो सकता है। पर कई मान्यताओं के आधार पर अमरनाथ गुफा इस से भी काफी पुराना होने का सम्भावना ज्यादा है। यह तीर्थ कितना पुराना है इसका एक और आधार है पुराणों में इस तीर्थ के सन्दर्भ में जिक्र होना।
इसके बाद कल्हण द्वारा बारहवीं शताब्दी में लिखी गई ‘राजतरंगिणी’ नामक पुस्तक में कश्मीर के राजा सामदीमत शिव के भक्त होने का और राजा के द्वारा पहलगाम के वन्य क्षेत्र में स्थित बर्फ के शिवलिंग की पूजा करने का उल्लेख भी मिलता है। उसी पुस्तक में इस जगह को अमरनाथ या अमरेश्वर का नाम से संबोधित किया गया है।
अमरनाथ गुफा की यात्रा तो प्राचीन काल से ही हो रहा था पर उस समय साधु-संत और घर त्यागकर तीर्थयात्रा करने वाले लोग ही ऐसी दुर्गम और कठिन तीर्थयात्रा कर पाते थे। इस बजह से इसका प्रचार सामान्य लोग में इतना नहीं हुआ था जितना आज है।
आजकल हिन्दुओं का प्रमुख तीर्थस्थल अमरनाथ गुफा के बारे में भ्रम भी फैलाया जा रहा है। तथ्यों को गलत तरिके से व्याख्या करके ये कहा जाता है कि इस पवित्र गुफा को सबसे पहले किसी मुसलमान गड़रिए ने खोजा था जो एक मिथ्या के समान गलत धारणा है। अमरनाथ गुफा का रहस्य को बिना समझे लोग इस अमरेश्वर महादेव को ‘बर्फानी बाबा’ बोलकर हिंदू धर्म को क्षति भी पहुँचा रहे हैं।
अमरनाथ से जुड़ी पौराणिक कथा
अमरनाथ गुफा का रहस्य के साथ कई पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई है जिसमें से हम यहां दो प्रसंग प्रस्तुत कर रहे है:
1) अमरत्व का रहस्य
एक कथा के अनुसार, एक बार पार्वती ने शिवजी से अमर होने का रहस्य पूछा तब भगवान शिव ने पार्वती को रहस्य बताने के लिये इसी जगह ले गए थे। इस स्थान पर ये सोचकर ले गए थे कि यहां पर उनके द्वारा बताई गई रहस्य कोई भी नहीं सुन पाएगा। यहां शिवजी ने देवी पार्वती को अमरत्व का रहस्य सुनाई थी और अपने अमर रहने का राज बताया था, जिसके कारण इस स्थान को अमरनाथ कहा जाता है।
अमर होने का रहस्य सुनाने के लिए भगवान शिव ने कोई भी इस कथा को नहीं सुन पाए इसका उपाय किया था। लेकिन अनजाने में उस जगह पर कबूतर के अंडे रह गए थे जो कुछ समय बाद कबूतरों में बदल गए। मान्यता है कि इस अमर कथा को सुनकर वे कबूतर भी अमर हो गए जो आज तक जीवित हैं। इस स्थान पर कुछ यात्रियों नें इन कबूतरों को देखने का दावा भी किया है।
2) कश्मीर घाटी जलमग्न होना
एक और पौराणिक मान्यता अनुसार एक बार कश्मीर की घाटी जलमग्न होकर बड़ी सी झील बन गया था। इस के बाद ऋषि कश्यप ने सब की भलाई के लिए इस जल को छोटे-छोटे नदियों बनाकर बहा दिया। उसी समय भृगु ऋषि अपने यात्रा के दौरान वहां से गुजर रहे थे तब पानी कम होने पर भृगु ऋषि ने सबसे पहले हिमालय में यही अमरनाथ की गुफा और शिवलिंग को देखा था। ऑनलाइन खरीदने के लिए उपलब्ध हर स्वाद और बजट के अनुरूप विभिन्न विकल्पों के साथ, हमारे भागीदार-प्रायोजित चश्मे ब्राउज़ करें
उसी समय से यह स्थान भगवान शिव का पूजा स्थल बन गया और शिव के इस अद्भुत हिमरूप के दर्शन पाने के लिए लाखों तीर्थयात्री इस दुर्गम जगह में आकर अनंत आध्यात्मिक सुख लेने लगें।
अमरनाथ यात्रा का सबसे अच्छा समय
सामान्य तौर पर अमरनाथ गुफा की यात्रा के लिए मई से सितंबर का समय अच्छा रहता है। प्रत्येक साल जुलाई और अगस्त के बीच अमरनाथ यात्रा शुरू होती है जो कि यात्रियों के लिए सही समय है।
इस बार अमरनाथ यात्रा 2023 का यात्रा अवधि 62 दिन की होगी जो 1 जुलाई से शुरु हो रहा है। गर्मियों में यहां का तापमान सही रहता है और इस समय काफी हरियाली देखी जाती है। सर्दियों में यहां के ठंड को सहन करना कठिन होता है।
अमरनाथ कैसे जाएं – अमरनाथ की चढ़ाई कितनी है
श्री अमरनाथ गुफा जाने के लिए भक्त अपनी सुविधा अनुसार मुख्य रूप से दो रास्तों में से किसी भी रास्ता का चयन कर सकते हैं। पहला रास्ता अनुसार पहलगाम से पैदल यात्रा करना होता है तथा दूसरा रास्ता अनुसार बालटाल से पैदल यात्रा करना होता है।
पहलगाम वाला रास्ता जम्मू से पहलगाम होकर अमरनाथ गुफा तक जाता है। ये रास्ता करीब 48 किलोमीटर लम्बा है। पहलगाम अमरनाथ यात्रा के लिए बेस कैंप है – यहां से अमरनाथ गुफा के लिए पैदल यात्रा शुरू होता है।
बालटाल वाला रास्ता बालटाल होकर अमरनाथ गुफा तक जाता है। यहां बालटाल बेस कैम्प से पवित्र गुफा के लिए पैदल यात्रा शुरू होता है जिसकी दूरी लगभग 15 किलोमीटर मात्र है। लेकिन ये मार्ग बहुत दुर्गम और कठिन माना जाता है।
सड़क मार्ग से जाने वालों के लिए पहले जम्मू होते हुए श्रीनगर तक का यात्रा तय करना होगा। श्रीनगर से पहलगाम या बालटाल कहीं भी पहुँचा जा सकता है। आप के जानकारी के लिए बता दें कि दिल्ली से अमरनाथ के लिए नियमित बस सेवा उपलब्ध रहती है।
निष्कर्ष (Conclusion)
आज के पोस्ट में हिन्दुओं के बहुत ही खास और प्रसिद्ध तीर्थस्थल अमरनाथ गुफा कहां है, अमरनाथ गुफा का रहस्य और इतिहास समेत अमरनाथ जाने के लिए अच्छा समय और रास्तों के बारे में भी बताने का प्रयास किया गया है।
अमरनाथ गुफा का इतिहास बताते हुए हम पाठकों से आग्रह करना चाहते हैं कि कृपया यहां उल्लेख की गई भ्रम को फैलने से रोककर सनातन आस्था को बचाने में अपना योगदान दें।
इसमें हम क्या कर सकते हैं? आपके अपने “अमरेश्वर” को “बाबा बर्फानी” बुलाना बंद कर सकते हैं। दूसरा, अमरनाथ गुफा कितनी प्राचीन है इसके लिए अमरनाथ गुफा का इतिहास को समझकर भ्रामक बातों का प्रचार रोक सकते हैं।
अमरनाथ से जुड़ी हुई प्राय पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
इस साल 2023 के लिए अमरनाथ यात्रा (Amarnath Yatra 2023) का रजिस्ट्रेशन कब से शुरू होगा?
2023 के लिए 17 अप्रैल से अमरनाथ यात्रा के लिए अनलाइन और अफलाइन माध्यम से रजिस्ट्रेशन शुरू हो चुका है।
अमरनाथ यात्रा के लिए कितनी रजिस्ट्रेशन फीस लगती है?
2023 अमरनाथ यात्रा के लिए रजिस्ट्रेशन फीस प्रति व्यक्ति मात्र 120 रुपये है। अनलाइन रजिस्ट्रेशन में 220 रुपये लगते हैं। NRI के लिए रजिस्ट्रेशन फीस बैंक के माध्यम से प्रति व्यक्ति 1,520 रुपये लगता है।
अमरनाथ यात्रा के लिए रजिस्ट्रेशन कैसे करना होगा?
अफलाइन रजिस्ट्रेशन पंजाब नैशनल बैंक, जम्मू-कश्मीर बैंक, यस बैंक और SBI बैंक समेत निर्धारित 542 बैंक शाखाओं में किया जा सकता है।
अगर अनलाइन रजिस्ट्रेशन करना है तो आप कृपया http://jkasb.nic.in में जा सकते हैं।
2023 में अमरनाथ यात्रा कब होगी?
2023 में अमरनाथ यात्रा 1 जुलाई से शुरु होकर 31 अगस्त तक चलेगी। इस बार कुल 62 दिनों तक यात्रा चलने वाली है।
अमरनाथ जाने के लिए कितनी उमर होनी चाहिए?
अमरनाथ यात्रा 2023 के लिए यात्री की उमर 13 साल से 70 साल के बीच होना चाहिए। इसके साथ ही कुछ निर्धारित अवधि से ज्यादा समय से गर्भवती महिला भी यात्रा में सामील नहीं हो सकती है।
अमरनाथ की चढ़ाई कितनी है?
पहलगाम का रास्ता होकर अमरनाथ गुफा तक करीब 48 किलोमीटर की पैदल चढ़ाई होती है। वहीं पर बालटाल का रास्ता से अमरनाथ गुफा तक करीब 15 किलोमीटर की पैदल तथा कठिन चढ़ाई होती है।